शनिवार, 14 मार्च 2009

वीर वीरमदेव

जालोर का रहने वाला हूॅ इसलिए जालोर की कहानी सबसे पहले कहूंगा। कारण वह इतिहास में बहुत अनजानी कहानी है। जालोर कब तथा किसने बसाया यह अभी तक इतिहासकारों के बीच में विवाद का विषय रहा है। कुछ लोग जालोर का सम्बन्ध जाबाली ऋषि से जोडते है। उनके नाम पर इसका नाम जाबालीपुर था और उससे ही अपभ्रंष होते होते जालोर हो गया। कुछ लोग यह भी कहते है कि जालहुरउ शब्द से यह धीरे-धीरे जालोर हो गया। जालहुरउ शब्द इसलिए बना था कि इसके चारों तरफ जाल अर्थात् पीलू नामक छोटे फल के वृक्षों की बहुयातायत थी। जालोर के पास में जवाई नदी बहती है। इसका नाम भी जवाई किस लिए पडा यह कहना भी कठिन सा लगता है। संवत् 1368 में वैषाख सुदी पंचमी बुधवार को जालोर में सोनगरा चैहानों के शासन का समापन हुआ, तब से जालोर खालसा है। मैं आज वीरमदेव की कहानी कहने के लिए आया हूॅ। रावल कान्हडदेव के पुत्र का नाम वीरमदे या वीरमदेव था। चैहान कुल का भूषण था, सुन्दर था। सुन्दरता तथा मोहकता इतनी थी कि दिल्ली के तात्कालिन बादषाह अल्लाउदीन खिलजी की एक पुत्री जिसका नाम फिरोजा या सीताई कहा जाता है। वह वीरमदेव पर मोहित हो गयी। वीरमदेव से विवाह का हठ कर बैठी। राजहठ, बालहठ तथा त्रियाहठ जग जाहिर है। सीताई ने वीरमदेव से विवाह का प्रण कर लिया। जालोर के इतिहास पर एक खण्ड काव्य कान्हडदे प्रबन्ध है। उसके अनुसार सीताई का कहना यह था उसका तथा वीरमदेव का सात जन्म का साथ है। अपनी पुत्री के हठ के सामने बादषाह अल्लाउदीन खिलजी झुक जाता है। वीरमदेव के सामने विवाह का प्रस्ताव बादषाह का दूत गोल्हण भाट लेकर जाता है। उससे पूर्व बादषाह अपनी लडकी को यह कहकर समझाता है कि हिन्दु तथा तुर्क में विवाह सम्बन्ध नहीं हो सकता है। तु इस जिद को छोड दे। कान्हडदे प्रबन्ध का लेखक प˜नाभ लिखता है।
आम तात सांभलि अरदास, वीरमदे छइ लीलविलास।
रूप वेष वय सरीषइ भावि, कान्हकुंयर मुझनि परणावि।।
बोल्यउ पातिसाह परि करी, गहिली वात म करि कुंअरी।
ताहरइ मनि कूडउ उछाह, हीदू तुरक नही वीवाह।।

वीरमदेव का इन्कार स्थानीय भाषा में इस दोहे के रूप में प्रसिद्ध है।

मामा लाजे भाटिया, कुल लाजे चहुआण।
जे परणु तुरकडी, अवलो उगे भाण।।

अर्थात् मैं बादषाह की लडकी से विवाह करू तो मेरा चैहान कुल, मेरा ननिहाल भाटी राजपूतों का वंष लज्जित हो जायेगा। इस कारण सुरज भलेही पूर्व से पष्चिम में उगना प्रारम्भ कर दे। मैं अपनी बात को नहीं छोड सकता।

वीरमदेव के इन्कार से जालोर में युद्ध हुआ। वीरमदेव का पूरा परिवार महिला, बच्चें सब उस युद्ध की ज्वाला में जल गये। चितौड से भी बडा जोहर जालोर के दुर्ग पर हुआ। जिसमें एक साथ 1584 महिलाओं ने अपने प्राण जोहर की ज्वाला में होम दिये। वीरमदेव स्वयं भी उस युद्ध में वीर गति को प्राप्त हुये। उनके शीष को दिल्ली लिजाया गया। जहां पर उसके साथ फेरे खाने का प्रयास सीताई द्वारा किया गया। उसमें भी वह नाकाम रही। दन्त कथा कहती है कि सीताई ने वीरमदेव के विरह में अपने प्राण जमना में कूद कर स्वाह कर दिये।

8 टिप्‍पणियां:

  1. जालौर का इतिहास कभी पढ़ा नहीं था पिछले जोधपुर प्रवास के दौरान राजस्थानी ग्रन्थागार से विरमदेव सोनगरा के बारे में एक लघु पुस्तिका मिली जिसे पढने के बाद पता चला कि इस योद्धा को जो सम्मान मिलना चाहिय था वो नहीं मिल पाया जबकि वीरता और आन बान के लिहाज से यह योद्धा किसी भी प्रसिद्ध राजपूत योद्धा से कम नहीं था | अतः उस पुस्तिका के आधार पर एक छोटा लेख अपने ब्लॉग पर लिख पाया ताकि लोगो को इस योद्धा के बारे में भी पता चल सके |

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    1. बहुत बढ़िया सा बहुत गौरवपूर्ण इतिहास है हमारे क्षेत्र का

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  2. Good stori hamebhi pata nahitha ke hamare purvajo ki a se dasthae likhi hue he

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  3. Rajendra singh chauhan,, mene apne papa or dada ji se viramdev ke bare me suna or ham bi wahi se aye te mujhe jada to nhi pat kuch bate aaj bi pata he

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  4. Shekhawat Saab bahut hi achhe ,bahut hi anutha prayas kiya gaya jo sarahniy hai .kintu iss mahan yodha ko kam na kah kar agrani khana jyada uchhit hota.rahi baat itihaas me jagah na milne ki to hkm sirf 22 saal ki umar me hi isse jyada ye veer purush or kya kar sakta tha jiski charcha delhi tak to ho gayi or to or sabhi unki bahadurika loha man ne lage the ,kuch saal or jiye hote to itihaas sayad kuch or hi hota ,or kanhad de prabandh se achhha ullekh iss vansh ke baare me kahi or nhi mil sakta ....bhul chuk maaf hkm...

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  5. mama lage bhatiya kul lage chouhan je me pernu turkadi paschim uge bhan

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  6. हमने अपने दादा जी से यह कहानी के रूप में सुना था हालाकि बहुत घुमा फिरा कर कहानिका विस्तार मिलता है मगर खुद इसके बारे में जाके लोगो से तथा जालोर के प्राचीन पुस्तकों और लोगो से बात करने के पचचात पता चला की यह कहानी बहुत ही गहरी है, एक गाना बना रहा हूं योद्धा के लिए जय राजपुताना

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