शनिवार, 11 अप्रैल 2009

भस्मासुर बना आरक्षण

आरक्षण भस्मासुर बना गया है। इसकी रचना करने वाले आम्बेडकर आज जीवित होते तो इसके घोर विरोधी होते तथा इसको समाप्त करने के आन्दोलन का नेतृत्व करते। राजस्थान इसकी दाहकता से ज्वलित हो चुका है। प्रंचडता का अनुभव कर चुका है। आरक्षण का हवन कुण्ड कई लोगों की बलि ले चुका है। करोडांे रूपयों की राष्ट्रीय क्षति हो चुकी है। मण्डल, आर्थिक, पिछडा वर्ग, अल्प संख्यक, गुर्जर, जाट, ब्राह्मण सभी की अपनी-अपनी मांग है। राजनेताओं ने इसे वोट खरिदने का हथियार बन चुका है। यह एक ढंग से ए.टी.एम. है। अर्थात् कार्ड खेलों, पासवर्ड दबाओं, वोट निकालों। यह एस.टी.एम. 58 सालों में घातक बन चुका है। विस्फोट की तैयारी है।

अभी गुर्जर आन्दोलन के समय भाजपा के एक वरिष्ठ विधायक से पूछा तो उन्होने कहा कि मजा आ रहा है। इससे हमारी नेतृत्व परिवर्तन की मांग पूरी हो जायेगी। किसी ने कहा कि हिन्दू मर गए। इस प्रकार हर समय आरक्षण किसी न किसी का बलिदान लेकर ही चला है।

आज आरक्षण पर समग्र रूप से व्यापक चिन्तन का समय आ चुका है। इसके स्वरूप पर राष्ट्रीय बहस का समय का चुका है। अभी गुर्जर आरक्षण आन्दोलन की आग में जब राजस्थान तप रहा था। उस समय सबसे अधिक आश्चर्य मुझे पूज्य संत रविशंकर महाराज के वक्तव्य पर हुआ कि वे भी यह कह बेठे कि गुर्जरों की मांग उचित है, परन्तु क्यों? वस्तुतः आरक्षण जिनको नहीं मिला, वे इसको हर हालत में प्राप्त करना चाहते है। जिनको मिल गया वे सब पिढीयों तक इसे अपने तक सिमित रखना चाहते है। आरक्षण पर उच्चतम न्यायालय का राइडर 50 प्रतिशत है। उच्चतम न्यायालय के राइडर को कई प्रान्तों ने तोड दिया, उसे संविधान संशोधन कर समर्थन दिया गया। वैसे सभी नेताओं का शगल बयानबाजी होता है। इससे कोई अछूता नहीं है।
आरक्षण देने का आधार सामाजिक भेदभाव, आर्थिक पिछडापन तथा इससे उत्पन्न होती विषमता, हीन भावना, कमजोरी था। इस प्रकार के सभी वर्गो में विभिन्न श्रेणिया बनाकर जोडा गया था। आज यदि आरक्षण की मांग उठती है तो सभी दलों, अर्थ शास्तियों एवं अन्य का यह दावा झूठा है कि देश प्रगति कर रहा है। विकास हो रहा है। हम आगे बढ रहे है। वास्तव में ऐसा होता है तो आरक्षण से स्वतः लोग दूर जाते, इसे समाप्त करने की मांग करते। जबकि सारा कुछ इसके विपरित हो रहा है। आरक्षण आन्दोलनों में किसी भी दल का नैतृत्व निकम्मा तथा नकारा हो जाता है। आरक्षण आन्दोलनों से जो कुछ उभरा है वह इतना भयावह है कि डर लगता है। बडे विशाल जाति समूह एक विद्रोही का रूप अख्तियार करे। बसे जलावे, रेल ट्रेक तोडे, 10-15 दिन तक शव रखे रहे, आत्मदाह हो जाये, धमकिया दी जावे। यह सब अलोकतान्त्रिक उपाय होते है। विशाल जाति समूह की दबाव राजनीति के सामने सरकारे, सत्ता-पुलिस लाचार होती है। न्याय प्रियता, अन्य का सुख चैन, जीवन का अधिकार इस कथित बहुमती विद्रोह, तानाशाही या अदैवीय कृत्य से खो जाता है। रक्षक मौन है। भक्षक कृत्य से सक्रिय है। अब गलत काम का पुरस्कार भी है। साहयता है। कैसे-कैसे मानदण्ड, नौकरी भी है। कानून की अवज्ञा हिसंक ढंग से करो, अराजकता उत्पन्न करो, उसके रक्षक होने का दावा करो।

सरकारे भी झुकती है। वोट की ताकत ऐसी है कि भारत मां को डायन कहने वाले, उच्चतम न्यायालय की अवमानना करने वाले मंत्री बनते है। इस देश में इसी प्रकार रावणीवृति का गुणगान होता है। उसकी प्रशस्ति होकर महिमा मण्डन किया जाता है। कंस को सहारा जाता है। तब बिचारे हिटलर-मुसोलीनी, ओसामा बिन लादेन को आपराधी क्यों करे।

आज के आरक्षण आन्दोलन, आरक्षण से ही उत्पन्न सामाजिक राजनीतिक तथा आर्थिक विषमता की उपज है। इस पर समाज विज्ञान की दृष्टि से गंभीर विचार की आवश्यकता है।

जाटों के आरक्षण से राजपूत उद्वेलित क्यों हुआ? गुर्जरों ने एस.टी. आरक्षण की मांग क्यांे की? इसके मूल में सरकारी नौकरी की बजाय राजनैतिक पद पाने की लालसा ज्यादा है। आरक्षण के आधार पर सरपंच, प्रधान, प्रमुख आदि के पद जब मिल जाते है तो उसको लेकर विवाद भी होते है। विवाद का मूल कारण बढता हुआ जातिवाद है। जातिवाद के आधार पर पनपता पक्षपात है। भाई-भतीजा वाद है। जिस कारण बार-बार विरोध होता है।
आरक्षण ने योग्यता का गला घोटा है। आरक्षण पर पुनर्विचार करने का अब समय आ गया है। सवाल यह उठता है कि क्या मायावती, रामविलास पासवान, रामदास आठवाले को आरक्षण की क्या जरूरत है। इसी तरफ से लालू प्रसाद यादव मूलायमसिंह यादव, नितीष कुमार, सुषील कुमार मोदी को आरक्षण की क्या आवष्यकता है। जो लोग आरक्षण का लाभ लेकर आयकर देने की स्थिति में आ गये है। उन सब लोगांे से यह लाभ छिन जाना चाहिए। राजस्थान में एस.टी. के आरक्षण का लाभ जिस समुदाय को मिलना चाहिए था वह सिरोही, डूंगरपुर, बांसवाडा, चित्तौड, प्रतापगढ़ के समुदाय के लोग आज भी अत्यंत गरीबी की हालत में है। पिछडे है। षिक्षा के पर्याप्त साधन नहीं है। आरक्षण का लाभ जिस मीना समाज ने प्राप्त किया। वे सभी लोग जागीरदार मीना रहे है। इस कारण से प्रारम्भ से ही इनमें षिक्षा का स्तर ठीक था। फिर आरक्षण का साथ मिल गया। लोग आगे बढ गये। इसी क्षैत्र में इसी तरह के सामाजिक आधार वाला गुर्जर समाज आरक्षण का लाभ नहीं मिलने से साठ साल में अपने समान समाज से पिछड गया। यही विवाद की जड़ है। आरक्षण अब सामाजिक समरसता का वाहक नहीं होकर अब समाज में विषमता उत्पन्न करने में कारण बन रहा है। सभी लोग मिलकर टूटते समाज को बचाने के लिए इस पर चिन्तन करे।

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