रविवार, 12 अप्रैल 2009

अम्बेडकर, महात्मा गांधी, डाॅ. लोहिया तथा डाॅ. हेडगेवार

पिछली एक शताब्दी अर्थात् 1901 से लेकर अभी तक का भारतीय सामाजिक ताना-बाना, राजनीतिक ताना-बाना, मिडिया की चटपटी खबरे, राजनेताओं के चित्र या उनकी बाते उनके किस्से इन चार युग पुरूषों के चारों तरफ ही भ्रमण करते हुये नजर आते है। सामान्य रूप से आज का मिडिया तथा बहुत सारे लोग इनको परस्पर विरोधी मानते रहे है। ऐसा बहुत कुछ लिखा भी जाता रहा है। भारत के वर्तमान राजनीतिक परिदृष्य पर विचार करे तो अम्बेडकर की विचारधारा की ठेकेदारी बहुजन समाज पार्टी ने, दलित सेना ने रिपब्लिकन पार्टी ने डीएमके ने तथा बामसेफ आदि ने उठा रखी है। यह लोग हर बात में डाॅक्टर भीमराव अम्बेडकर, ज्योतिबा फुले, साहुजी महाराज के नाम का योग करते है। मूल निवासी होने की बात कहते है। अम्बेडकर पर अपना एक मात्र अधिकार बताते है। मानों इनके पास कापी राईट तथा पैटेंट है।

इसी तरह से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, नेषनल कांग्रेस पार्टी (एनसीपी शरद पवार) प्रभृति राजनीतिक दल मोहनदास कर्मचंद गांधी को अपना पैटेंट बताते है। गांधी के नाम का सर्वाधिक प्रयोग यही लोग करते है। हर बात में गांधी की विरासत का आधार लेना इनकी फितरत है।

इसी तरह से मूलायमसिंह यादव, लालूप्रसाद यादव, नितीष कुमार, शरद यादव सभी लोग अपने आपको राममनोहर लोहिया से प्रेरित बतलाते है। उनकी विचारधारा को अपनी विचारधारा बताते हैै। अपने आपको लोहियावादी कहलाना पसंद करते है।

भारतीय जनता पार्टी या उसका पुराना रूप भारतीय जनसंघ की विचारधारा का स्त्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से निकलता है। जिसकी स्थापना 1925 में डाॅक्टर केषवराव बलीराम हेडगेवार द्वारा की गयी थी।

वर्तमान भारतीय राजनीति में यह सभी विचारधाराओं के ठेकेदार लगभग परस्पर एक दूसरे का विरोध करते हुये चलते हैै। एक दूसरे को गाली भी देते है। मारने काटने की धमकी भी देते है। रोलर के नीचे पिसवाने का भाषण भी देते है। अर्थात सत्ता प्राप्ति की गला काटू दौड में यह सब कुछ भी करने के लिए तैयार है। कोई अपने आपको धर्मनिरपेक्ष कहता है। कोई अपने आपको हिन्दुत्व का एक मात्र रक्षक कहता है।

यह चारों विचारक वामपंथी विचारधारा के समर्थक कभी नहीं रहे। लोहिया पर कुछ लोग कभी कभार वामपंथ समर्थक होने का आरोप लगाते रहे है परन्तु लोहिया का जीवन गरीब का समर्थक था। वह राम को पूज्य मानते थे। उन्होने राम की सजीव स्मृति चित्रकूट में रामायण मेला प्रारम्भ किया था। डाॅक्टर राममनोहर लोहिया की एक पुस्तक है भारत माता धरती माता, जिसे ओमकार शरद ने सम्पादित किया है। उसको पढ़ने से बहुत स्पष्ट रूप से प्रकट होता है कि लोहिया वामपंथी नहीं थी।

इसी तरह से भीमराव अम्बेडकर वामपंथ के कितने समर्थक थे। इसका अंदाजा अम्बेडकर अणी माक्र्स को पढने से पता लग सकता है। इसके अलावा एक पुस्तक डाॅक्टर अम्बेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा जो दंतोपंथ बा ठेंगडी द्वारा लिखी गयी है। उससे भी यही भाव निकलता है।

महात्मा गांधी तथा डाॅक्टर हेडगेवार घोषित रूप से वामपंथ विरोधी है। वर्तमान में शर्म निरपेक्षों तथा प्रगतिषिलों को यह चारों महापुरूष परस्पर विरोधी विचारधारा के प्रतीक लगते है। मेरी राय में यह सभी लोग एक ही दिषा में एक ही उद्देष्य के लिए काम करते रहे है। इनका एक मात्र उद्देष्य सबल भारत, संगठित भारत, सुविकसित भारत निर्माण करना था। महात्मा गांधी, राममनोहर लोहिया तथा डाॅक्टर हेडगेवार भगवान राम के विरोधी नहीं थे। अम्बेडकर के बारे में यह कहा जाता है कि वे राम के विरोधी थे। उन्होने एक पुस्तक भी लिखी है। उनको राम का व्यवहार सीता के प्रति अन्यायपूर्ण लगा था। उन्होने राम के व्यवहार की आलोचना अवष्य की है परन्तु राम की पूजनीयता पर उनको संदेह था। ऐसा मुझे कही नहीं लगा। इस विषय मंे दत्तोपंत ठंेगडी ने एक उदाहरण दिया है कि 20 सितम्बर 1951 को संविधान समिति में भाषण करते समय उन्होने यह कह दिया था कि राम ने सीता का जो त्याग किया था। वह त्याग अन्यायपूर्ण था। इस पर कुछ लोगों ने आपत्ति उठायी तो उनका कहना था उनका ऐसा भाव नहीं था। बाद में अपने कथन को उन्होने कार्यवाही से हटा भी दिया था। अम्बेडकर की विचार यात्रा में ऐसे कई प्रसंग आये हो उनके द्वारा संकलित रिडील्स कई बार बदले गये है।

मैंने जैसा पाया है यह चारों युग पुरूष सामाजिक समरसता के पक्षधर थे। वामपंथ के विरोधी थे। इनके सुधार का लक्ष्य बिन्दु हिन्दू समाज था। यह इस समाज में परिवर्तन चाहते थे। कारण यह इनका अपना समाज था। यह भाव इनके मन में था। यह इस बात के समर्थक थे कि जाति प्रथा ने समाज को तोडा है। इस पर विचार करने की आवष्यकता है। इसी कारण यह देष गुलाम हुआ है। पाकिस्तान के विषय में अथवा इस्लाम के विषय में डाॅक्टर हेडगेवार तथा डाॅक्टर अम्बेडकर की विचारधारा एक जैसी थी। डाॅक्टर अम्बेडकर ने अपने जीवन के उत्तर काल में बौद्ध मत स्वीकार किया था। उस अवसर पर उन्होने जो कहा था उसे लिखना आज आवष्यक मानता हूॅ।“I Will choose only the least harmful way for the country. And that is the greatest benefit I am conferring on the country by embracing Buddhism; for Buddhism is a part and parcel of Bharatiya Culture. I have taken care that my conversion will not harm the tradition of the culture and history of this land.”अम्बेडकर ने इस्लाम के विषय में जो लिखा वह शायद उनके वांगमय के भाग 15 में तथा पाकिस्तान और पार्टीषन नामक पुस्तक से पता लगता है। उसका सार jagritimanch.blogspot.com/2007/11/blog-post_8000.html पर लिखा हुआ है

हिन्दू मुस्लिम एकता एक असंभव कार्य है भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और वहा से हिन्दुओ को बुलाना ही एक हल है यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं सांप्रदायिक शांति के लिए अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगाए विभाजन के बाद भी भारत में सांप्रदायिक हिंसा बनी रहेगीए पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओ की रक्षा कैसे होगी घ् मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं हैं मुसलमान की भ्रातु भावना केवल मुसलमानों के लिए है कुरान गैर मुसलमान को मित्र बनाने का विरोधी है इसलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य ही हैं मुसलमानों की निष्ठा भी केवल मुस्लिम रास्त्रो के प्रति होती है इसलाम सच्चे मुसलमान हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओ को अपना निकट सम्बन्धी मानने की आज्ञा नहीं देताए संभवतः यही कारण था की मौलाना मोहमद अली जैसे भारतीय मुसलमानों ने भी अपने शरीर को हिंदुस्तान की अपेक्षा येरुशेलम में दफनाना अधिक पसंद किया कांग्रेस में मुसलमानों की स्थितियो के सम्पर्दायिक चौकी की तरह है गुंडागर्दी मुस्लिम राजनीती का स्थापित तरीका हो गया है इस्लामी कानून समाज सुधर के विरोधी हैं वे धर्मनिरपेक्षता को नहीं मानते हैं मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओ और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद श्आतंकवादश् का संकोच नहीं करते

प्रमाण सार डॉ अम्बेडकर सम्पूर्ण वाड्मयए खंड १५ ,इस विषय पर आप सभी के विचार मैं आमंत्रित करता हूॅ कि हम एक गंभीर चिंतन की दिषा मंे बढ सके। इसे पहला भाग माने।

2 टिप्‍पणियां:

  1. गांधी, अंबेडकर और लोहिया के विचारों का एक तुलनात्मक पुस्तक डा. रामविलास शर्मा ने लिखी है। इस पुस्तक में उन्होंने इन तीनों ही महापुरुषों के प्रकाशित वांङमय से उद्धरण उनके विचारों का आजकल की राजनीति और दैनिक जीवन के लिए प्रासंगिकता का विश्लेषण किया है। बहुत ही पठनीय पुस्तक है। इतिहिस, वर्तमान राजनिति, आदि की अनेक गुत्थियां खुल जाएंगी इसे पढ़ने पर।

    इस पुस्तक को वाणी प्रकाशन, दिल्ली ने प्रकाशित किया है। अवश्य पढ़ें।

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  2. मेरे विचार में महापुरुष कभी अपने विचार असन्तुलित नहीं रखते,वे देश व समाज़ के व्यापक हित के विचार प्रस्तुत करते हैं, ये तो बाद में उनके समर्थक,तोड-मरोश कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते है।

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